क्राइम जर्नलिस्ट(सम्पादक-सेराज खान)
महान स्वतंत्रता सेनानी,सय्यद सखावत हुसैन
एक गुमनाम देश भक्त एवं स्वतंत्रता सेनानी जिसको यथोचित सम्मान न मिल सका
ऐसा वीर स्वतंत्रता सेनानी और एक ऐसा आज़ादी का दीवाना जिसने न केवल अपनी नौकरी, बल्कि अपनी सम्पत्ती एवं प्राण भी देश पर न्योछावर कर दिये ।
दुद्धी/सोनभद्र।(प्रमोद कुमार)एक आपका जन्म सन 1870 ई. मे दमगडा ग्राम ज़िला इलाहाबाद के सय्यद वंश में हुआ था। आपके पिता का नाम श्रीमान सय्यद मीर अली मुहम्मद था। दुद्धी जो वर्तमान मे सोनभद्र की तहसील है उस समय ब्रितानि हुकूमत का एक स्टेट था सय्यद सख़ावत हुसैन साहब वहाँ पटवारी बना के भेजे गये और बाद में मास्टरी, अरायज़ नवीसी, और स्टाम्प फ़रोश आदि हुये। लेकिन उन्होने देश भावना से प्रेरित हो अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन में हिस्सा लेना प्रारम्भ किया जिसमे स्वदेशी प्रचार, विदेशी बहिष्कार, लगानबंदी, नशाबंदी इत्यादि प्रमुख थे।
दुद्धी घने वनों एवं वन्य जीवों से भरा एक पहाडी क्षेत्र था जिसमें आवागमन के कोई संसाधन नहीं थे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना बडा ही दुष्कर होता था इस कारण प्रचार मे बडी कठिनाई आती थी फिर भी आपने हिम्मत नहीं हारी और दुद्धी से युसुफ़ मसीह, रामानंद पांडे, बेनीमाधव पांडे, पुरुषोत्तम सिंह, सुक्खन अली एवं सुखलाल खैरवार आदि को ले कर अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध प्रचार-प्रसार करते रहे। सन 1921 में आपने असहयोग आंदोलन में भाग लिया फलस्वरूप 22 अप्रैल सन 1922 को लगानबंदी आंदोलन में आप गिरफ्तार हुये और मिर्ज़ापुर जेल भेज दिये गये। आप सरकारी पद पर होते हुये भी अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध प्रचार प्रसार करते रहे थे इस कारण जेल में उनको असहनीय मानसिक एवं शरीरिक पीडा से गुज़रना पड़ा।
हसन सोनभद्री (जाने माने कवि और महान स्वतंत्रता सेनानी सय्यद सख़ावत हुसैन के पौत्र)
इसी दौरान अंग्रेज़ों ने उनको तमाम सरकारी लाभों से वंचित करते हुये दुद्धी में उनकी समस्त सम्पति ज़ब्त कर ली और उस पर मवेशी हस्पताल एवं सरकारी आवास बना दिये जो आज भी मौजूद है। एक वर्ष से भी अधिक समय तक कारागार मे व्यतीत करने के बाद दुद्धी से लगभग 50 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित बचरा ग्राम मे निर्वासित जीवन बिताते हुये सन 1925 ई. में केवल 55 वर्ष की आयु मे उनका स्वर्गवास हुआ। उनके पौत्र एवं वारिस “हसन सोनभद्री” (सय्यद क़मरुल हसन) जो देश के जाने माने शायर एवं लेखक है सय्यद सख़ावत हुसैन के अंतिम समय का वर्णन करते हुये बताते हैं कि जेल में मिली भयंकर शारीरिक यातनाओं से उनका शरीर पूरी तरह से टूट चुका था जिस कारण जेल से वापस आने के बाद एक वर्ष भी जीवित न रह सके और वापस आते समय रास्ते में उनको विष भी देने का भी प्रयास हुया फिर भी उस देश भक्त का जज़्बा कमज़ोर नहीं पडा और अपनी आँखों में देश की आज़ादी का सुनहरा सपना लिये स्वतंत्रता से 22 वर्ष पूर्व उन्होंने अंतिम साँस ली. सन 1949 में प्रकाशित पुस्तक “ज़िला मिर्ज़ापुर के स्वतंत्रता संग्राम इतिहास” में प्रोफेसर विश्राम सिंह जी ने स्वतंत्रता सेनानी श्री सय्यद सखावत हुसैन का बडे ही सम्मान से वर्णन किया है।
देश के इस महान वीर स्वतंत्रता सेनानी को शत शत नमन