क्राइम जर्नलिस्ट(टीम)
*आवासीय योजना की निलामी का मामला*
*दो गज की दूरी मास्क है जरूरी की उड़ी धज्जियां*
*मंदी का नामो निशान नहीं*
*सीकर:* कोरोना का कहर जिस कदर बढ़ रहा है, और चाहे इस पर केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, चाहे जो नियम बनाये इस पर, कितनी भी पालना करवाये लेकिन यह सब खेल एक कागजी बनकर रह गया है। दिखावटी बन कर रह गया है।
इस पर काम करने वाले इन नियमों की धज्जियां उड़ाये तो दोष दे तो किसे दे। क्योंकि ऐसा नहीं है कि वो इस कोरोना के लपेटे में नहीं आये हो, उनको इसका गणित मालूम नहीं है।
लेकिन यह सब खेल चल रहा है, पोपाबाई के राज की तरह। यहाँ पर ऊपरी नियम और लागू तो अन्दर के नियम और लागू, और जो नियम है वो केवल साधारण आमजन पर लागू। कोई करे तो क्या करे।
लक्ष्मी की कृपा होती ही ऐसी है कि बड़ो-बड़ों को चंचल बना देती है। उसकी चमक के आगे बाकी सब फीके पड़ जाते है। और इसी लक्ष्मी की चांदी की चम्मच के आगे हमें जो यह नियमों की अनदेखी का मामला देखने को मिला वो किसी बड़ी कमाई से कम का मामला नहीं है।
जी हाँ, हम बात कर रहे है सोमवार के दिन की जब नगर परिषद प्रांगण में तोदी नगर, आवासीय योजना की नीलामी का। प्रथम चरण आया यहाँ पर, जो भीड़ थी और जो नियमों को बनाने वाले व नियमों का पालन करवाने वाले या ऐसे कुछ जनप्रतिनिधी या ऐसे अनेक व्यक्ति जो अपना घर हो, अपनी जमीन हो, उसकी चाहत में ऐसे टूट पड़े मानो बस सब कुछ हमें ही चाहिये। हमारे पास जो भी है, हम उनसे सन्तुष्ट नहीं है। उसमें और इजाफा करना चाहते है। सौ कहते है ना चाहे भगवान किसको कितना भी दे उसकी लालसा कभी कम नहीं होती है।
पर अक्सर हम पहले जब कोरोना का समय आया और लॉकडाउन लगा। धन्धे सभी चौपट हो गये तो यह सोच रहे थे कि अब पैसों का खेल खत्म हो चुका है। अब आगे और मंदी होगी, दिक्कतें होगी लेकिन कल जिस प्रकार बोली में जो भीड़ थी, खरीददार थे, उससे नहीं लगता नहीं कि जिनके यहां लक्ष्मी कृपा है, उन पर कोई असर हुआ हो, उनके पास तो और बहुत कुछ आया है। इस दौरान पर जिनके पास नहीं है, उनकी भी संख्या कम नहीं है, लेकिन उनकी तो हैसियत ही नहीं है अन्दर जाने की, लेकिन यह सब खेल कुदरत का है। कोई सोने की चम्मच में खाता है तो कोई लकड़ी की चम्मच में। पर जो भी हो, इस निलामी के खेल में जमकर जो उड़ी नियमों की धज्जियां वो देखने लायक थी।